कुछ ठहरे से हैं हम, कुछ उलझे से ख्याल हैं कुछ तो नींद है कम, कुछ आँखों में सवाल हैं नींद लगे आँखों में तो, ज़रूरी नहीं रातें होने आईं हैं क्यूंकी अक्सर रातों में तो, उसमें अश्क़ उतर आते हैं कुछ वक्त सही नहीं है, कुछ कमजोर वो भी हैं कुछ मुश्किल में हूँ मैं, कुछ मजबूर वो भी हैं यूँ तो इज़हार के 'लफ्ज़' कई लिखे थे हमने उनके सामने फिर भी खोमोश से हम हैं कुछ ठहरे से हैं हम, कुछ उलझे से ख्याल हैं कुछ तो नींद है कम, कुछ आँखों में सवाल हैं