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Showing posts from April, 2017

चल मेरे संग चल

चल मेरे संग चल, चल संग मेरे कहीं निकल तेरे संग हो न हो ज़िन्दगी, संग तेरे जीना है ये पल होती होगी किसी को आशिक़ी, मुझको तो है तेरी दिलकशी चल मेरे संग चल, राहें और भी मंजिले हैं दूर ...

देख लेने दे जी भर के

देख लेने दे जी भर के उसकी तस्वीर को मुझे, वादा किया है उससे की संभाल के रखूँगा नही घूर लेने दे उसकी निगाहों को मुझे कम से कम उसकी तस्वीर तो मुझसे खफा नही

आपकी तस्वीर देखकर देखता रह गया

आपकी तस्वीर देखकर देखता रह गया क्या कहूँ, और कहने को क्या रह गया देखती रहीं वो नज़रीन, मूज़े घूर कर और, में था की होश खोता रह गया आपकी तस्वीर देखकर देखता रह गया जी भर के देखने की चाहत रखता रह गया क्या कहूँ, बस जाते जाते रोकता रह गया कहते कहते वो फिर सोचता रह गया उसके होंटो पे कुछ कांपता  रह गया लोग जाने क्या क्या कहते हुए निकल गये और में था की 'लफ्ज़' पिरोता रह गया आपकी तस्वीर देखकर देखता रह गया क्या कहूँ, और कहने को क्या रह गया

कुछ ठहरे से हैं हम, कुछ उलझे से ख्याल हैं

कुछ ठहरे से हैं हम, कुछ उलझे से ख्याल हैं कुछ तो नींद है कम, कुछ आँखों में सवाल हैं नींद लगे आँखों में तो, ज़रूरी नहीं रातें होने आईं हैं क्यूंकी अक्सर रातों में तो, उसमें अश्क़ उतर आते हैं कुछ वक्त सही नहीं है, कुछ कमजोर वो भी हैं कुछ मुश्किल में हूँ मैं, कुछ मजबूर वो भी हैं यूँ तो इज़हार के 'लफ्ज़' कई लिखे थे हमने उनके सामने फिर भी खोमोश से हम हैं कुछ ठहरे से हैं हम, कुछ उलझे से ख्याल हैं कुछ तो नींद है कम, कुछ आँखों में सवाल हैं