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Showing posts from July, 2017

जमाना माने मुझे कुछ भी मगर

जमाना माने मुझे कुछ भी मगर, तू मुझको अपना यार मानने तो दे एकतरफ़ा प्यार में मेरी इज़्ज़त नही घटती, तू मुझको अपना इश्क़ निभाने तो दे जोगी बन बैठा हूँ मैं कब से तेरा, तू मुझको आज अपनी चलाने तो दे मुझको बस एक ख़याल की तरह, कुछ देर अपने जहन में आने तो दे मैं तब से सिर्फ एक दीदार को तरसा हूँ, इस प्यासे को अपनी प्यास भुजाने तो दे तेरे दिल में आज, चाहे बेमतलब ही सही, मुझे इन 'लफ़्ज़ों' को जरा सजाने तो दे

बारिश

वो बारिश का मौसम था शहर में, कुछ वो भीगे थे कुछ नम थे हम भी सड़कों पर जाम लगा लंबे - लंबे, कुछ गलती उनसे हुई, कुछ बेकाबू थे हम भी

सफर

सफर पर वही कश्तियां निकलती हैं, जिनके लिए हवाएं भी तेज चलती हैं सोच कर, हमनें भी किया था एक जहाज तैयार, लेकिन कम्बख़्त अब लहरें भी खामोश निकलती हैं यूँ शोर में 'लफ्ज़' है ख़ामोश तो कमजोर ना समझना, ये फितरत है मेरी, जो तूफ़ानो की राह बदलती है